Tuesday, February 20, 2018

sad love story - meri paro


आखे भर आई थी और होठ कपंकपा रहे थे वो गले से लिपटी थी कुछ समझ नही आ रहा था उसे क्या दुआ दू जो कभी हाथ न छोडने कि कसम ली थी और आज वही हाथ किसी गैर के हाथो मे थमाते ।
वो न जाने क्या रोते-रोते कह गई मगर हमारे कानो मे तो लौहा सा पिघल कर जम गया था दुनिया के लिए एक लडकी कि विदाई थी पर उन आसूओ की किमत सिर्फ मै और वो ही समझ सकते थे ।
लोगो ने उसे हमसे जुदा किया और वो लड़खड़ाते कदमो से डोली कि तरफ बड रही थी और मेरा मन अतीत की स्मृतियो के तरफ-
वो हमेशा कहती थी बुद्धू देखना एक दिन कोई राजकुमार घोड़े पर बैठ कर आयेगा और मुझे ले जायेगा और तुम यही बैठे बैठे झील मे कंकड फेकते रहना ।
और मै हमेशा हँसकर कहता तुझे और वो भी राजकुमार , कोई जोकर भी न आयेगा ।
मगर चंदन एक बात बता तू शादी करेगा न मुझसे ।
तुझसे और वो भी शादी, चल हट ।
तो ठीक है तू ककड फेंक दारिया मे चली ।
ये ये पारो रूठ गई पागल तू समझती क्यो नही हमारी शादी नही हो सकती पागल शादी 2 दूर के लोगो कि होती है और हम तो एक ही दीवार के सहारे बने दो अलग अलग घरो मे रहते और शादी 2 आत्माओ का मिलन है और हम तो 2 शरीर 1 आत्मा है ।
तो चदन क्या पडोसीओ कि शादी नही होती ।
हा पगली होती है बड़े शहरो मे, फिल्मो मे, गोरे लोगो मे पर पगली हम तो काले है न, और तू भी कोई कैटरीना नही है ।
बुद्धू तू नही समझेगा पर जब कोई जबरदस्ती उठा ले जायेगा तो देखना मे मर जाऊगी तब तू समझेगा ।
और वो चिढ के भाग जाती ।
और कल-
वो चहल कदमी कर रही थी और मै पत्थर के बूत कि तरफ जम चुका था एक हाथ मे कंकड था और कुछ पास मे, पानी मे नही फेक रहा था पर लहरे थमने का नाम नही ले रही थी ।
और उसी ने चुप्पी टोडी - फेक ककड फेंक कहा था कुछ कर पर नही अब कल क्या होगा वो कोई जोकर आयेगा और ले जायेगा और तू ............!

मेरे पास कोई जवाब नही था सिर्फ आंखो से आंसू बह कर दरिया मे गिर रहे थे । खेलते-खेलते पता ही नही चला कब वो इतनी बड़ी हो गई कि शादी करदी उसके घर वालो ने ।
बोलेगा भी या नही.........! वो मेरा कन्धों को हिलाते बोली ! 
बहुत देर से रूका आसूओ का शैलाब फूट पड़ा और पारो से लिपट फफक फफक रो पड़ा पारो तू सच कल जा रही पागल ये कोई उम्र है तेरी शादी की बिलकुल बच्ची लग रही ।
नही पारो नही मे मर जाऊंगा आसूओ से भिगे 2 चहरे एक थे ।
शाम हो रही चदन मुझे जाना होगा और घर मेहमान भी है अगर कोई इधर आ गया तो वो अलग होते बोली ।
पर मेरे आंसू रूकने का नाम नही ले रहे थे वो कुछ कदम बड़ी और पलटी मेरे होठो को चूमा उसकी आखो से बहते वो नमकीन आसूं मेरे मूह मे जा रहे थे वो खड़ी हुई और घर की तरफ दौड गई ।
मै रोकना चाहता था एक बार गले लगाना चाहता था पर होठ कपंकपा कर रह गए अंदर से निकली आवाज गले मे अटक कर रह गई ।
और वो चली गई और आज वो फूल सी बच्ची एक लाल जोडे मे लिपटी एक हूर से कम नही लग रही थी और उसके रोने की आवाज मुझे अंदर तक झझकोर रही थी वो डोली मे बैठ रही थी और मै जगल की तरफ भाग रहा था मै दूर जाना चाहता था उसके रोने की आवाज और उन दर्द भरी सिसकीयो से ।
अब आवाज कुछ कम हो रही थी पता नही मै दूर आ गया था या डोली दूर जा चुकी थी ।
सामने वही झील थी पास मे उसकी एक टूटी पायल और कुछ ककड जो वो अक्सर मुझे देख खनकती थी ।
अब कोई आवाज सुनाई नही पड रही थी और दरिया का पानी भी एकदम शांत था पर आंसू रूकने का नाम नही ले रहे थे ।
                                           
 - Arvindra chohan


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